Sunday, December 28, 2014

पाखी..


               पाखी....






एक पाखी,
मेरी साकी बन गयी,
पंख फैलाकर नभ् मे गुम गयी,
काश हम भी ,पाखी होते,
पंख फैलाते,गुम हो जाते ।

न बंधन कोई ,
न चिंतन कोई,
इस नव जीवन की,
तरणी मे,
मै शून्य यात्रा कर लेता,

मै नाहर बन,
गिरराज वक्ष मे,
अपना गेह बना लेता,
मै मेघ तुरंग बन,
अंचला की,
सात प्रकिमा कर लेता,

अपनी अभीष्ट पूर्ति कर,
हाला का भोग लगा लेता,
इस नव जीवन के,
अतुल्य मधु को,
आज यहाँ पर चख लेता,

अपने लोचन मे ,
लोक बसा ,
देवलोक यात्रा कर लेता,
पीर ,मद सब त्याग,
हिमकर मे धाम बसा लेता,

नीलकंठ के चरणों मे,
हलाहल भोग लगा देता,
मेघ मतंग बन,
आज सूर्य को मै ढक लेता,
चपला को वाहन बना
सुरपति से आज मै मिल लेता,

पंख फैलता ,
फिर उड़ जाता,
अर्श के उस अनंत तिमिर मे,

Tuesday, October 21, 2014

दीपावली

                                        ,,,,,,,,,,,,,दीपावली,,,,,,,,,,,
दीये बिन कैसी  दीवाली ,
अब नहीं वैसी दीवाली ,
आधुनिक लईटो में अब दीवाली ,
दीपावली बन गयी दीवाली ,
बिन दीये कैसी  दीवाली ,
   
कुम्हार से पूछों  कैसी  दीवाली ,
 अब नहीं वैसी दीवाली,
दीयो की खेप लौ के लिए तरस रही 
जल बिन मीन सी दिख रही ,
अब नहीं वैसी दीवाली
            दीये बिन कैसी  दीवाली ,


Friday, October 3, 2014

नया सवेरा

                                 नया सवेरा…

आज कुछ नया हुआ ,
पर सूर्य वही चाँद वही ,
आज कुछ नया हुआ ,
चपको सा पर्यावरण बचा ,
 आज कुछ नया कर,
सपनो का हिन्दुस्तान बना ,
हटा दो  धूल '
जो पथ को धुमिल करे ,
दिन को दिवाली बना ,
सपत नही अब आग जला ,
सपनो का हिन्दुस्तान बना ,

Friday, September 12, 2014

सैलाब

                                          सैलाब …  

सैलाबे  जन्नते  , डूबता शहर 
हाहाकार करती  प्रजा ,
जन्नत भी आज ,
नर्क सा सजा ,
 सैलाब मे पानी को तरसते ,
पानी में अंतिम सांस लेते लोग, 
 डूबता शहर या जन्नते सैलाब ,




रोआंसी आँखो से ,
अपनों को तलासते ,
सैलाब मे बहते घरौदो को देखते ,
आस की आस में,
 टक -टक निहारते लोग ,
 जन्नते सैलाब,सैलाबे  जन्नते 
   

Sunday, August 24, 2014

मधुवन की मधुशाला

                                        मधुवन की मधुशाला

मधुवन की मधुशाला,
सब लिए फिरे मधुप्याला ,
फिरे मतंग छलकाते प्याला ,
वह रे मधुवन की मधुशाला,

मधु के भी खेल निराले ,
तोड़ दिए सरे बंधन ताले ,
पंडित पादरी और वो काजी ,
मधुशाला के सब मधुसाथी ,

मधुशाला की मधुकुंज में ,
सभी दिखे एक पुंज में ,
 फिरे लिए सब मधुप्याला,
 वह रे मधुवन की मधुशाला,

Tuesday, August 12, 2014

नमन.....


                 

शहीदों को एक दिन,
नमन  पर्याप्त नही ,
न जाने कितने सुखदेव भगतसिंह ,
हँसते -हँसते  फ़ांसी चढ़  गए ,

 उनको एक दिन,

 नमन  पर्याप्त नही ,

कितनी मओ की  कोख उजड़ गयी ,
कितनो के सिंदूर जो मिट  गए ,
 उनको एक दिन,
 नमन  पर्याप्त नही ,

अंतिम क्षण तक जो लड़े ,
रणभूमि जो शहीद हुए ,
नमन करो उन्हें हर दिन हर पल ,
उनको एक दिन, नमन  पर्याप्त नही,



Sunday, August 10, 2014

रेशम का धागा

                                                         रेशम का धागा। ...................


यह कितना अजीब है ,
की एक रेशम का धागा ,
दिल के इतना करीब है ,
यह कितना  अजीब है ,

खुश है वो जिनके वीर है ,
दूर रहने वाले भी ,
दिल के करीब है ,
यह रेशम  का बंधन ,
कितना  अजीब है  

शायद  प्रेमरीत है,
 इस  रेशम के धागे में,
पिरोया हुआ प्रेम संगीत है 
यह राखी कितनी अजीब है ,

ओह बहन का  रूठ जाना ,
फिर  मानकर,
विजय तिलक  लगाना ,
एक रेशम से बध जाना ,
रेशम  बंधन कितना  अजीब  है ,

Thursday, July 24, 2014

नभ्

                                               नभ……

नभ अपनी गागर लिए ,
आस की बूंद गिराता चला ,
सूखी आँखो को नम ,
हरयाली फैलाता चला ,

घन -घटाओ की गर्ज्जना ,
दिल दहलाता चला ,
भू की भूख की तड़प ,
हारिल की प्यास बुझाता चला ,

पोखर के किनारे ,
दादुर को मन तक भीगता चला ,
 नभ अपनी गागर लिए ,
आस की  बूंद गिराता चला

Saturday, July 12, 2014

काश

                                     काश.…। 

काश यह कलम तलवार होती ,
तो हम भी हाथ लाल कर लेते ,
 कुर्बान कर देते ,
 हिंसक सरो को ,
कलम काश तलवार होती। 

पत्थर से ह्यद को ,
मोम सा काट देते ,
खौफ़ के हैवान की ,
भुजाएं उखाड़ देते ,
हम भी हाथ लाल कर लेते।
 
इज्जत के भेडियो को ,
जड़ मूल से उखाड़ देते ,
खौफ़ के शहर से 
खौफ़ को मिटा देते ,
काश यह कलम तलवार होती।
 

Friday, June 13, 2014

हैवानियत

                                       हैवानियत

हैवानियत का शहर 
यह जहन्नुम का है  यह आलम 

भेड़ियो  से भरा ,
शायद इंन्सा कोई न बचा ,
 
मासूम सी कितनी जिंदगिया,
लटकते फंदो में सिमट गई ,
खून के आशू ,अपनों का गम,
राजनीत की भेंट चढ़ गई ,

हैवानियत का शहर में ,
हैवानियत के दो केश और बढ़ गए ,
दिन गुजरा सब सो गए 
भेड़िये शिकार कर,
फिर फरार हो गए ,

Thursday, June 12, 2014

गंगा

                                              गंगा 

कल-कल  का स्वर करती 
पतित पावनी जल धारा 
संस्कृती की जन्म दायनी 
अमृत सी जल धरा 

दूध सी गोमुख से निकली 
पापो को जो धोते चलती 
धरती की प्यास  बुझाती
फिर सागर से मिल जाती 

आज छिड़ी जंग यह कैसी 
मानव चला माँ मिटाने 
स्वर्ग से आई जल धारा को 
कर्मो से काला पानी बनाने ,

भारत को जिसने कृषि प्रधान बनाया 
सूखे में फसलो को लहराया 
आज स्वम् लड़ रही है ,देखो 
अब बस रोको गंगा मर रही है , देखो

Wednesday, May 21, 2014

प्याज के आँशू

                                    प्याज के आँशू 

 दिखावे के ,बहकावे के,
 करुणा झलकाने के, 
 आँखे  नम करने के, 

 बहाने अपनाने में,
प्याज़ के भूमिका ,
आँशू  बहाने में ,

 वय्था कथा बतलाने में,
 प्रपुल्लित हद्रय से ,
 आँशू  बहाने में ,

 खुशियो की लालिमा में ,
 दुःख झलकाने में ,
 प्याज के आँशू बहाने में ,

Sunday, May 18, 2014

रोटी का टुकड़ा

                                  रोटी का टुकड़ा 

 तड़पती धूप में ,
 बूँद की चाहत लिए। 
 सूखे आँशु ,
 पेट की भूख़ ने किए। 
 धिक् -धिक्कारता समाज ,
 ठूठ सा ह्रदय लिए। 
 मुर्झाया बचपन ,
 रोटी का टुकड़ा लिए। 

  दिलासे  का भोजन ,
  झूठे पत्तल लिए। 
  कड़काड़ती धूप मे,
  हाथ पसारे हुए। 
  रोटी की आस में ,
  टकटक निहारें हुए। 
  भूखे पेट ,
  दुआए  माँगते हुए। 
  मुर्झाया बचपन ,
  रोटी का टुकड़ा लिए। 
    
       
             

Wednesday, April 30, 2014

मतदान

                              मतदान 

अपने  मत का करो मान ,
आ गया  मतदान ,
अब चुनना है , हमको यारो ,
अब भारत की  दशा सुधारो ,
 
अब सोचो नहीं ,
करो एक काम ,
अपने अधिकार का ,
करो सम्मान ,

मत जाना वादो पर यारो ,,
मोहर अब काम पर मरो ,
बहुत हुआ अब देखो यारो ,
अब भारत की  दशा सुधारो ,





Sunday, April 27, 2014

सभ्यता की लड़ाई

                          सभ्यता की लड़ाई। । 

भूल कर  सभ्यता हम अपनी ,
प्रश्चिम में अब ढल रहे ,
अपनी सभ्यता से दूर होकर ,
प्रेेम ग्रन्थ अब पढ़ रहे ,

अपने संस्कारो  को भूल कर ,
मदिरा पान अब कर रहे ,
भूल कर  सभ्यता हम अपनी ,
नव - निर्माण कर  रहे ,

मौन होकर सभ्यता अपनी ,
अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही ,
चार कंधे नहीं ,
एक कंधे के सहारे बढ़ रही ,

भूल कर  सभ्यता हम अपनी ,
प्रश्चिम में अब ढल रहे ,
ये कैसा ,
नव - निर्माण कर  रहे ,





Thursday, April 24, 2014

कलयुग का मानव

                                                                                    कलयुग का मानव


कलयुग  का बल बुद्धि  हीन है  मानव ,
पीढा से पीढ़ित दीन यह मानव ,
पतझड़ सा सुखा पात यह मानव ,                  
कलयुग का मानव ,कलयुग का मानव

उत्त्साह रहित कर्म हीन यह मानव
दया हीन दृस्टि हीन यह मानव ,
पीड़ित  को पीड़ा देता यह मानव ,
कलयुग का मानव यह कलयुग का  दानव ,

शक्तिहीन रक्त छीण यह मानव
पाप युक्त धर्म हीन यह मानव ,
घृणा  युक्त प्रेम  हीन यह मानव ,
कलयुग का मानव ,कलयुग का मानव ,


Sunday, April 20, 2014

अबोध

                                                            अबोध … 

माँ की खोज में लगी अबोध ,
बस उसको ममता का बोध ,
कहाँ से आई यह अबोध ,
जिसको नहीं किसी का बोध,
मेरा ह्दय भी न कर पाया शोध ,
कलयुग की माँ या कलयुग की अबोध ,

किलकारियाँ वह भूल गई थी ,
मुस्कान भी उसकी  रूठ गई थी ,
 बस ममता की उसे भूख लगी थी ,
माँ की गोद से छूटी माँ की गोद में अब पड़ी थी 
क्या है यह ? मै न कर पाया शोध ,
कलयुग की माँ या कलयुग की अबोध ,

Sunday, April 13, 2014

क़यामत


                                       क़यामत ,,,



 जब देखता हूँ  सोचता हूँ ,
 यह अंधेरा छाया है कैसे ,
चारों ओर कोहराम मचा ,
मृतुदूत आया हो जैसे ,
   
        जब देखता हूँ  सोचता हूँ ,
        मौन रहते रहते यहाँ छाया सन्नाटा कैसे ,
        जहाँ थी किलकारियाँ वहाँ ख़ून की छीटे कैसे ,
        सोचता रहता यही यह अंधेरा मिटाया जाए कैसे ,

 जब देखता हूँ  सोचता हूँ
मानव दया को विश्लेषण बनाकर ,
क्रिया में पाप लाया कैसे ,
अब आशा भी बिखर गई काँच जैसे ,

जब देखता हूँ  सोचता हूँ ,
       

Saturday, April 5, 2014

                           पथ

                                                           पथ ,,,,




कुछ  पथ चिंन्ह छोड़ गए
एक पथ हमारे लिए ,
कह रहे आज आगे
बढ़  जाने के लिए ,
उन पथो की धूल ,
हटाने के लिए

एक नये पथ चिंन्ह
फिर बनाने के लिए ,
फिर अहिंसा ,
अपनाने के लिए
उस पथ को आगे ,
बढ़ाने के लिए

अकेला राही बन ,
चल जाने के लिए ,
कुछ नया बदलाओ ,
लाने के लिए ,
कुछ  पथ चिंन्ह छोड़ गए
एक पथ हमारे लिए

Friday, April 4, 2014

स्वप्न


                                          स्वप्न।।।।।।।।







न दर्द है प्रेम में ,
न दर्द है घात में ,
दर्द है केवल
स्वप्न के अल्प्विराम में ,

      न इच्छा है स्वर्ण  की ,
      न इच्छा है चाँदी की ,
      इच्छा है  केवल
      स्वप्न के साक्षात्कार की ,

न डर है यमराज से ,
न डर है हमराज़ से ,
डर है केवल
स्वप्न के पूर्णविराम  से ,

Wednesday, April 2, 2014

एक कविता


                     

आज मै  बहुत रोया ,
न  किसी को याद कर ,
न किसी को प्यार कर,
           
               मै रोया अपनी ,
               सौ बार सुधारी  कविता को ,
               एक बार फाड़ कर ,

मैने जिसमें ज़जबात बया किये ,
जिसको लेकर रात में  सोया ,
आज उसके लिए मै बहुत रोया ,
     
         ,,,,,आज मै बहुत रोया,

   
               

Tuesday, April 1, 2014

क्या लिखू

                                         क्या लिखू 

     क्या लिखू ,
     अब शब्द नहीं मिलते ,
     जब ढूढ़ता हुँ ,
     अशब्द ही मिलते ,
  
    जब देखता हुँ ,
    विश्व शब्द हीन दिखता ,
    विश्व में शब्द का भण्डार है ,
    फिर क्यों छाया यह अंधकार है ,
    
     कहाँ गई वह विचारधारा ,
     वह शब्दो की रेखाए ,
     विश्व में  अपशब्दो का भण्डार बढ़ता ही जाता ,
     जेसे शब्दो कोई निगलता ही जाता ,
   
      उच्च विचारो की प्रवत्ति ,
     अब शून्य हो चुकी इस विश्व में ,
     समुद्र है अशब्द का शब्द अब बूँद में इस विश्व में ,
    क्या लिखू अब शब्द नहीं मिलते इस विश्व में ,

कल्पना

                                                       कल्पना 

    लिख  दो किताबों पर वह
    जो इतिहास बन जाएँ,
     कुछ ऎेसा लिखो ,
    कि आप की कलम
    तलवार बन जाएँ,
                         


                    काट दो सर उनके
                    जो उठे एकता और
                    अखण्डता पर,
                    कुछ ऎेसा लिखो ,
        की  भारत फिर महान बन जाए ,
               
                   
     
                  

वीरांगना

                                                        वीरांगना 

आओ आज सुनाता एक कहानी ,

एक थी बड़ी वीरागना नारी ,
सावॅल  सा तन था जिसका ,
मन में दया की ख़ान भरी थी ,
       
               आँखो में अपना खाब लिए ,
               आजादी के लिए खूब लड़ी थी ,
               तलवार चलाती जब दोनों हाथों से ,
               बिजली सी वो लग रही थी ,
आओ सुनाता एक कहानी ,
एक थी बड़ी वीरागंना रानी ,

                 लाखो  सरों को काट गिराती ,
                 कितनो को मरघट पहुँचाती 
                फ़िरंगियों के रक्त की धार बहाती ,
                रढ़ में वह विचर रही थी ,

झाँसी के राढ़ में वह वीरगंना लड़ रही थी ,
 काल बनकर बरस रही थी , 
वो तलवारों की रानी थी 
झाँसी की  महारानी थी 

                 आज सुनाता एक विजय कहानी ,
                 एक थी बड़ी वीरांगना नारी ,
            

  

आशा

                                                       आशा'''''' 


  निराशा फिर आशा को तोड़ गई ,
 बढ़ते हुए कदमो को रोक गई ,

कुछ करने कि मुझमें समझ  नहीं ,
अब आगे बढ़ने की ललक नही ,

                                साहसा एक चीट  को देखा '
                                जो चल रही थी ईट पर ,
                             
                                आगे  बढ़ने के लिये  वह
                                सीख रही थी ईट पर ,

तब मुझको एहसास हुआ,
गौरी  सा मुझको ज्ञान हुआ ,

फिर ललक जगी ,
फिर कदम बढ़े ,
फिर कुछ  करने की सनक जगी ,
                                 

कदम

                                                          ,,,,,कदम,,,
                                                           

बढ़ते  रहो  कदम जब  तक न थके ,
तोडो न  हौसला सांसे जब तक  न रुके ,
चलते रहो मंजिले जब तक न  मिले ,
                                       
          देख  उस चीट को ,
          गज जिससे डर रहा ,
          बचने के लिए अपने
          लंम्बी साँसे भर रहा ,

बढ़ते  रहो  
जब तक कदम तेरे न  थके '
करते  रहो प्रयत्न तब तक ,
जब तक प्रयत्न खुद भी न थके ,