आशा''''''
निराशा फिर आशा को तोड़ गई ,
बढ़ते हुए कदमो को रोक गई ,
कुछ करने कि मुझमें समझ नहीं ,
अब आगे बढ़ने की ललक नही ,
साहसा एक चीट को देखा '
जो चल रही थी ईट पर ,
आगे बढ़ने के लिये वह
सीख रही थी ईट पर ,
तब मुझको एहसास हुआ,
गौरी सा मुझको ज्ञान हुआ ,
फिर ललक जगी ,
फिर कदम बढ़े ,
फिर कुछ करने की सनक जगी ,
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