Sunday, April 13, 2014

क़यामत


                                       क़यामत ,,,



 जब देखता हूँ  सोचता हूँ ,
 यह अंधेरा छाया है कैसे ,
चारों ओर कोहराम मचा ,
मृतुदूत आया हो जैसे ,
   
        जब देखता हूँ  सोचता हूँ ,
        मौन रहते रहते यहाँ छाया सन्नाटा कैसे ,
        जहाँ थी किलकारियाँ वहाँ ख़ून की छीटे कैसे ,
        सोचता रहता यही यह अंधेरा मिटाया जाए कैसे ,

 जब देखता हूँ  सोचता हूँ
मानव दया को विश्लेषण बनाकर ,
क्रिया में पाप लाया कैसे ,
अब आशा भी बिखर गई काँच जैसे ,

जब देखता हूँ  सोचता हूँ ,
       

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