क़यामत ,,,
जब देखता हूँ सोचता हूँ ,
यह अंधेरा छाया है कैसे ,
चारों ओर कोहराम मचा ,
मृतुदूत आया हो जैसे ,
जब देखता हूँ सोचता हूँ ,
मौन रहते रहते यहाँ छाया सन्नाटा कैसे ,
जहाँ थी किलकारियाँ वहाँ ख़ून की छीटे कैसे ,
सोचता रहता यही यह अंधेरा मिटाया जाए कैसे ,
जब देखता हूँ सोचता हूँ
मानव दया को विश्लेषण बनाकर ,
क्रिया में पाप लाया कैसे ,
अब आशा भी बिखर गई काँच जैसे ,
जब देखता हूँ सोचता हूँ ,
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