Saturday, July 12, 2014

काश

                                     काश.…। 

काश यह कलम तलवार होती ,
तो हम भी हाथ लाल कर लेते ,
 कुर्बान कर देते ,
 हिंसक सरो को ,
कलम काश तलवार होती। 

पत्थर से ह्यद को ,
मोम सा काट देते ,
खौफ़ के हैवान की ,
भुजाएं उखाड़ देते ,
हम भी हाथ लाल कर लेते।
 
इज्जत के भेडियो को ,
जड़ मूल से उखाड़ देते ,
खौफ़ के शहर से 
खौफ़ को मिटा देते ,
काश यह कलम तलवार होती।
 

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