Sunday, May 18, 2014

रोटी का टुकड़ा

                                  रोटी का टुकड़ा 

 तड़पती धूप में ,
 बूँद की चाहत लिए। 
 सूखे आँशु ,
 पेट की भूख़ ने किए। 
 धिक् -धिक्कारता समाज ,
 ठूठ सा ह्रदय लिए। 
 मुर्झाया बचपन ,
 रोटी का टुकड़ा लिए। 

  दिलासे  का भोजन ,
  झूठे पत्तल लिए। 
  कड़काड़ती धूप मे,
  हाथ पसारे हुए। 
  रोटी की आस में ,
  टकटक निहारें हुए। 
  भूखे पेट ,
  दुआए  माँगते हुए। 
  मुर्झाया बचपन ,
  रोटी का टुकड़ा लिए। 
    
       
             

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