Friday, October 16, 2015

उम्मीद का कारवाँ

उम्मीदों के सहारे हम जिये जा रहे
कुछ घूँट है कड़वे
कुछ दबी हुए यादें
पर हम सब सहे जा रहे

निकलता हुआ देखता हूँ
चाँद आज कल
पर यह अमावस्या की छाया
क्यों बढ़ी जा रही

उम्मीदों के क़ारवे को लेकर
हम जिये जा रहे
कुछ स्वप्न टूटे कुछ लोग छूटे
हम उम्मीदों के सहारे  जिए जा रहे, (आशु)

Thursday, August 27, 2015

हथेली में चाँद

आज रात्रि में मन
एक अज़ीब कोशिश कर रहा
बार बार चाँद को हाथो में भर रहा
चंचल मन न मान रहा
न हार रहा

कभी कभी नभ्चर की छाया
चाँद में पड़ जाती है
कभी मेघ भी गागर लेकर आ जाते है
पर मन नहीं मान रहा
हाथो में चाँद को भर रहा

बचपन की कुछ झलकियां
आज अतीत में ले जा रहा
माँ की लोरियां नानी की कहानियाँ
आज फिर सुना रहा
आज चाँद को मन पकड़ रहा

Saturday, July 25, 2015

शहीद

जब बढ़ रहे थे
कदम हमारे
सांसे रुक रही थी
दुश्मनों की

हर तरफ हमारा
खौफ़ था
कल तक जो दुश्मन
बेख़ौफ़ था
आज स्वप्न में भी
नहीं दिख रहा

माँ के चरणों को छूकर
हम जब निकले थे
सरहद में जाकर
फिर जा मिले थे

Friday, July 24, 2015

क़िस्मत की लकीरें

क्यों करता है नाज़
क़िस्मत ने जो दिया आज़
क़िस्मत को हमने भी देखा है
पानी बरसते में
दिये को जलते देखा है

तू पत्थर दिल इंसा
तू मोम की ताक़त क्या जाने
जो रो देती एक बाती के जलने से
यह पत्थर दिल इंसा

Saturday, May 9, 2015

माँ

माँ खुद पसीनें से तरबतर
पर मुझ पर पंखा डुलाते देखा है
खुद जग कर
मुझको सुलाता देखा है

खुद भूखा रह कर
मुझको खिलाते देखा है
पूँछने पर,पेट भरे होने का
बहाना करते देखा है।

मेरे दर्द में होने पर
माँ को रोते देखा है
मेरी सफलताओ में
उनकी आँखो को चमकते देखा है

मेरे घर देर आने पर
उनकी आँखो में इंतज़ार देखा है
मेरे न खाने पर
रात को जगाकर खिलते देखा है





Wednesday, April 15, 2015

अनजान रिश्ते

कितनी अज़ीब है
यह दुनियां
कितने अनजान रिश्ते
बनते  यहाँ
अपनों से बढ़कर
कभी कभी लोग
लगते यहाँ
दिल के रिश्ते कितनो से
जुड़ते यहाँ
न जान है  न पहचान है
पर लोग मिलते यहाँ
अपने हर लम्हे को
लोग लिखते  यहाँ
साथ में हँसते
साथ में रोते यहाँ  (आशु)

Thursday, March 5, 2015

होरी

रंग - वंग हो भंग संग में,
छोटा-बड़ा सब एक रंग में,
रंगो तनो और मनो रंगो,
नाचे सब एक संग में,

बड़े प्रेम से प्रेमी मिले,
रंगो के इस रंग-मंच में,
रंग-वंग हो भंग संग में,
रंगे हुए सब एक रंग में,

मीठा-सीठा खट्टा-वट्टा,
भूल गए सब रंग-वंग में,
ढूढ़ रही वो अपना प्रीतम,
पर रंगे हुए सब एक रंग में,

भंग पिये मतंग फिरे,
रंगो के इस रंग मंच में,
और पिये जा, और लिये जा,
रंगों के इस रंगा-रंग में,
होरी के प्रेम मिलन में।

Tuesday, March 3, 2015

होली

रंगो के इस रंगा रंग मे,
प्रेम मिलन के इस रंग मंच मे,
जाति धर्म सब लग गए किनारे,
एक रंग मे रंगे है सारे,

पीला नीला हरा गुलाबी,
बने हुए सब एक नयी प्रजाती,
प्रेम के रंग मे सभी रंगे,
रंगों के इस रंग मंच मे,

गोरा बन गया कितना काला,
काला लग रहा और निराला,
पकड़ पकड़ कर सभी रंगे गये,
होली के इस रंगा रंग मे,
प्रेम के इस प्रेम मिलन मे।

Thursday, February 5, 2015

ख्वाइश

देखा है कितनो ने मंजिलो की,
दौड़ में अपनों को छोड़ दिया,
हमसे भी कहते है,
जाओ कुछ कर दिखाओ,
अपनों से थोड़ा दूर हो जाओ,
नहीं तो कुछ नहीं कर पाओगें,
जहाँ जो वहाँ पर रह जाओगे,

अगर अपनों को खोकर,
जहाँ पा लिया तो क्या फायदा,
दो मृदु जल के कुँए खोकर,
समंदर पा लिया तो क्या फायदा,

हम भी उठेगें
बस अभी ठानी नहीं है,
इसका मतलब यह नहीं ,
की हमारे सपनों
की कोई कहानी नही है,

पढ़ लेना जब इतिहास के,
पन्नों में लिखी जाये क़ामयाबी मेरी,
देख लेना जब तुंम्हारे ,
बच्चों के सेल्बेस मे आये  कहानी मेरी,(आशु)

Monday, January 26, 2015

मौन

मौन

न शब्द लिखा
न अर्थ लिखा
मै मौन रहा,
लेखनी भी मौन रही,

शहीद हुए है जो रण मे,
उनको श्रद्धा ही लिखता रहा,
न अश्रु भरे हमने आँखो मे,
न ह्दय भरा हमने करुणा सें,

बस गर्व हुआ ,
मुझे उन माओ  पर,
जिसने शहीदो कों जन्म दिया,

गर्व हुआ,
अपने भारत पर,
जहाँ शहीदों ने,
जन्म् लिया,

न शब्द लिखा
न अर्थ लिखा

बस घृणा हुई,
मुझे अपने से,
मै देश के काम ,
ना आ पाया,

मै मौन रहा,
मै मौन रहा