जब बढ़ रहे थे कदम हमारे सांसे रुक रही थी दुश्मनों की
हर तरफ हमारा खौफ़ था कल तक जो दुश्मन बेख़ौफ़ था आज स्वप्न में भी नहीं दिख रहा
माँ के चरणों को छूकर हम जब निकले थे सरहद में जाकर फिर जा मिले थे
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