उम्मीदों के सहारे हम जिये जा रहे
कुछ घूँट है कड़वे
कुछ दबी हुए यादें
पर हम सब सहे जा रहे
निकलता हुआ देखता हूँ
चाँद आज कल
पर यह अमावस्या की छाया
क्यों बढ़ी जा रही
उम्मीदों के क़ारवे को लेकर
हम जिये जा रहे
कुछ स्वप्न टूटे कुछ लोग छूटे
हम उम्मीदों के सहारे जिए जा रहे, (आशु)
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