एक फूल उगा
पत्थर के दर्मिया
समय गुज़रा
प्रेम बढ़ता गया
पत्थर पत्थर ही निकला
रक्ततप्त होकर
पुष्प को जला दिया
उसकी अस्थियों को
वायु में उड़ा दिया
समय गुज़रा
पत्थर बृद्ध हो गया
काई से नाहा कर
रंग को भी त्याग दिया
फिर कोपल फूटी
फूल फिर निकला
अब उसकी बाहों (जड़ो) ने
उसको आगोश में ले लिया (आशु)
No comments:
Post a Comment