Sunday, December 4, 2016

एक कहानी अधूरी

कभी-कभी हम देखते हैं कि लोग अपने परिवार का पोषण करने के लिए क्या-क्या नहीं करते अपने बच्चों को पढ़ाते हैं अच्छी शिक्षा देते हैं अच्छे संस्कार देते हैं और बच्चे भी अपने मां बाप का कर्ज चुकाने की पूरी कोशिश करते हैं पर आज का समाज वहां के लोग अपनी सोच को बदल नहीं पाए इसी पर आधारित एक कहानी आप सबके समक्ष रखने जा रहा हूं पढ़ियेगा मंथन करिएगा तर्क दीजिएगा।

एक गांव था  एक धोबी रहता था वहां पर, हम जानते हैं कि गांव में धोबी को किस नजर से देखते हैं शहर होता तो उसकी ड्राइक्लीन की दुकान होती पर गांव गांव ही होता है सोच बदल सकती है पर यह मुश्किल है और कैसे बदला जाए इसका उपाय भी तो होना चाहिए चलिए छोड़िए कहानी में आते हैं तो धोबी के परिवार में मात्र 3 सदस्य  थे धोबी रामदीन पत्नी सावित्री और एक पुत्र राजू तीनों बड़े खुशहाल होकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे राजू पढ़ाई करता था मां खाना बनाती थी कभी कभी मां पिताजी का हाथ बटाती थी समय बीता राजू ने हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और इंटर में प्रवेश किया विद्यालय शहर में था तो अब राजू कम ही गांव जाने लगा था और शहर में ही रहकर अपनी पढ़ाई कर रहा था मां बाप अपने बच्चों को पढ़ता देखकर बड़े खुश होते और खूब मेहनत करके राजू को पैसे भेजते रहते हैं राजू भी कभी-कभी गांव आ जाता और मां-बाप के हाल चाल लेकर वापस चला जाता समय बीता राजू को एक अच्छी नौकरी मिल गई मां-बाप के चेहरे में चमक आ जाती है जब उनका लड़का या लड़की कोई भी उनके नाम को आगे बढ़ाता है अब नौकरी मिल गई थी राजू को राजू शहर का हो अब गांव में कौन है मां-बाप का भी हाल अब फोन में ही लेने लगा था मां भी कभी-कभी देहरी पर बैठकर इंतजार करती रहती कि राजू आयेगा राजू बदल गया ऐसा नहीं की मां बाप के लिए प्यार कम हुआ हो बस समय का अभाव  यह जिंदगी भी कितनी अजीब है कुछ पाने के लिए अपनों को छोड़ देना पड़ता है घर को छोड़ना पड़ता है परिवार को छोड़ना पड़ता है अब राजू के साथ भी यही था वह शहर में ढल गया था गांव में अच्छा नहीं लगता क्या करें समय बीता राजू का विवाह हुआ दोनों दो अब शहर में रहने लगे और मां बाप गांव में राजू के पास खुद का परिवार था मां बूढ़ी हो चुकी थी पिता भी थक गया था उसकी खबर कभी-कभी राजू ले लिया करता था मां भी कभी-कभी सोच कर रोती की क्यों पढ़ाया राजू को एक दिन राजू का फोन आया कि मां हम लोग विदेश जा रहे हैं मां बड़ी खुश हुई आशीर्वाद दिया चला जा बेटा और खूब नाम कमा पर दिल गवाही नहीं दे रहा था अब राजू परदेसी हो गया था समय बीता और वह वहां पर ही रहने लगा अपने देश में था ही कौन मां बाप उनका काम था अपने बच्चों को पढ़ाना और अपने पैरों पर खड़ा करना जो उन्होंने कर दिया और राजू बड़ा आदमी बन गया अपनों को खोकर राजू भी परिवार था
का लड़का था एक दिन खबर मिली क्यों उसकी मां बाप दोनों नहीं रहे मां पानी भरते समय फिसल गई जिस कारण वह तालाब में गिर गए और उसकी मृत्यु हो गई इसी गम में पिताजी भी चल बसे राजू भी क्या करता समय बीता अब राजू बुड्ढा हो गया और उसकी पत्नी दोनों ने सोचा कि अब वापस अपने देश चले बहुत पैसा कमा लिया नाम कमा लिया उन्होंने अपने लड़के से कहा कि चल वापस चलते हैं अपने देश पर शान शोहरत छोड़कर कौन जाएं उस गांव में यह कहकर लड़के ने वहां पर ही रहने का फैसला कर लिया राजू और उसकी पत्नी दोनों वापस भारत आ गए दुखी मन से और गांव में रहने लगे कभी-कभी राजू सोचता तो रोता कि  मां पर क्या गुजरती होगी जब वह कहती थी कि शहर में ही रह तरक्की कर और नाम कमा जब विदेश भेजा होगा तब क्या सोचा होगा या सोचता और रोता रहता आज जब खुद पर गुजर रही है तब उसे यह एहसास हो रहा है कि परिवार होता क्या है एक अधूरी कहानी है जो शायद हर परिवार से जुड़ती है हर व्यक्ति से जुड़ती है इस को बदलना होगा शुरूआत हमको ही करनी होगी ना जाने कितने राजू अपने परिवार को छोड़कर आज चंद रुपयों के चक्कर में जीवन की खुशी जीने का तरीका सब भूल गए है

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