poet's poem
Saturday, October 28, 2023
चन्द्र ग्रहण 2023
Friday, October 27, 2023
माँ
Friday, October 19, 2018
हिंदू
सिंह की भाँति चल
अन्याय को तू कुचल
ह्दय में देश प्रेम ले
समाज को बदल
संस्कार को जीवंत कर
हिँदुत्व की राह पर चल (आशु)
Thursday, September 13, 2018
हिंदी बिना हिंद
रो रही है हिंदी
आज के हिंद मे
माँ की लोरियां
वो नानी की कहानियां
गुम है किताबो में
मर रही है हिंदी
रो रही है हिंदी
यह हिन्द है
पर यहाँ हिंदी नही
भाषाओं के चक्रव्यूह में
अब बिंदी नहीं
रो रही है हिंदी
आज के हिंद में (आशु)
Tuesday, April 11, 2017
प्रकृति की उंगलियां
उंगलिया पकड़ लो
और दिखा दो बचपन ए को
इस प्रकृति के भोर
के तारो को
अस्तित्व हनन
उनका जिन्होंने
जिह्नोने तम को
रौशन किया
प्रकृति की मधुर वीणा पर
नाचता हुआ नृतकप्रिय
मोहता जग को
प्रकृति की उंगली पकड़
Thursday, March 16, 2017
सितारों की बग्गी
यह रात बिना चाँद की,
फिर क्यू यह सितारों का मेला,
आज लगे कुछ आसमा अकेला,
हमेशा जो आता था
सितारों की बग्घी मे,
फिर अकेले क्यों आये,
सितारें चाँद को छोड़ कर, ( आशु )
Coming soon more......
GOOD night
लकीरो का चाँद
कुछ अन छुई सी ज़िंदगी
कुछ अनछुए से पल
कुछ दबी हुई
अतीत की यादें
आज सहसा आप ने
जगा दिए
ओह रात रात भर
चाँद को देखकर
अपने सपनें सजोने
वो अपनी उंगली से
असमा पर लकीरे बनाना
वो तारो को गिन कर
फिर भूल जाना।
(आशु)