हमने इंसान को
बिना कपडे के ठिठुरते देखा
और बेजान पुतलो को
मलमल लपेटे देखा
राह पर अपनों को
ठोकर मारते देखा
और गैरो को अपना बनाते देखा
माँ को ममता को
ठुकराते हुए देखा
और जनवरो में ममता को
उमड़ते हुए देखा
हमने अभी क्या देखा
पत्थर पूजने के लिए
कोसों नंगे पाओ चलते देखा
पर इंसान को इंसान बनते न देखा(आशु)
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