Saturday, January 21, 2017

चाँद बिन रात

रात है बिन चाँद की,
फिर क्यू सितारों का मेला है
लग रहा आसमा
कुछ अकेला है

हमेशा तो आता था
सितारों की बग्घी मे बैठकर
फिर आज अकेले क्यों आये,
सितारें चाँद को छोड़ कर,

लग रहा कोई गिला
चाँद से हो गयी होगी
अपनी चाँदनी में
चूर तो रहता था रातभर

आज फिर क्यों उदास
होकर घर पर बैठ गया

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