Monday, October 24, 2016

कैसी क्रन्ति

कैसी यह क्रांति
न जोश है न होश है
खुद खुद से लड़ रहा
हर सख्श बेहोश है,

ख़ुद को ख़ुदा समझता
अहम में जब गर्जता
न चित की चिंता
न चिंतन किसी का
कैसी यह क्रांति

न मान न सम्मान है
फ़सा हर इंसान है
स्वम्भू बनाने की चाह है
न जाने कौन सी राह है

बस आगे बढ़ना है
कन्धा किसी का हो
बस चढ़ना है
सोच में नहीं शान्ति
कैसी यह क्रांति

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