Friday, April 8, 2016

लेखन कला और विषमतायें

इस आधुनिक युग में कलम के सिपाहियो की कमी नहीं है
बस कमी है ह्दय को झिझकोर् देने वाले लेख की जो आप को पढ़ने वाले के मस्तिष्क के अंदर विचार धाराओं की एक बिजली प्रवाहित कर दे और पाठक मानसिक रूप  से आप से जुड़ जाए ,और उनकी यह  इच्छा प्रबल हो जाए की वह आप के विचरो से सहमत है , सामजिक सोच अच्छा का होना  काम नहीं आता ना ही किसी समस्या को उठाना , जब तक आप के पास उसका पूर्ण रूप से समाधान न पता हो , आज के समय में लोगों के पास चिंतन का समय नहीं है उन्हें जो चाहिए अर्थ सहित चाहिए , समाज में बदलाओ आप का लेख नहीं ला सकता पर दिशा जरूर दिखा सकता है
जब तक पाठक आप से भावत्मक रूप से नहीं जुड़ेंगे तब तक उसे क्या चाहिए यह नहीं पता चलेगा , आज के सामज में अनेक तर्क वादी उपस्थित है तो आप के विचारों में बाधा उत्प्न जरूर करेगे उनको भी आप अपने विचारो के अधीन कर सकते है ,समस्याओं और उसके समाधान पर आधारित लेख समाजिक ढाँचा को मजबूत करने का काम करता है और लेखक के अंदर के अनेक  विचरो के उफान को सांत करने का कार्य भी करता है ,अगर आप नहीं लिखते है और मानवता के विषय में चिंतन करते है तो आप एक लेखक बन सकते है बस आप अपने विचारो को इक्कठा कर के कोरे पन्ने में उतार दे यह मत सोचे की क्या गलत है क्या सही है क्योंकि आज के युवा लेखक सामाज की कुरीतियों पर ही विशेष ध्यान देते है अच्छाई पर नहीं ,यही कारण है की पढ़ने वाला पाठक समाज की धूमिल छवि अपने मन मस्तिष्क में बना लेता है , और उसके अंदर विरोधाभास उत्प्न हो  जाता है और इस कारण वह भी समाज की स्थिति  का सही पता नहीं लगा पता है , आप जो भी लिखे वह पाठक को समाज हित में कार्य के लिए प्रेरित करे, इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए आज का समाज उतना कुरीतियों से नहीं घिरा है  जितना किसी समय था आज काफी हद तक निज़ात मिल चुका है बस जो बची हुई समस्याएं है उनका निवारण करने के लिए बस लोगो को प्रेरित करने के लिए कलम चलानी है और उसी पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है और एक किसी भी लेख के लिए शोध भी एक अहम भूमिका निभाता है ,और लेखक की विचार धारा शब्दों का चयन भी  एक मुख्य तथ्य है ,आप का लेख आज की भाषी प्रवत्ति के साथ साथ लेखन के लिये आवश्यक पूर्व निर्धारित शब्दों का उपयोग भी आवश्यक है तथा आप की रचना में आप द्वारा कुछ नय शब्दों का आविष्कार होना लाजमी है। यही नय शब्दों के जन्म का प्रमाण है कभी कभी यह उत्प्न नय शब्द पुरे लेख को एक दिशा प्रदान कर देते है  और लेखक के विचरो को खोल कर पाठक के सामने रख देते है, पाठक अपनी राय दे सके इसकी स्वतन्त्रा भी पाठक के पास होनी चाहिये  तभी कोई लेख एक प्रभावशाली रचना  हो सकती है , जो ह्दय को झिझकोर दे और आप के अंदर की सभी संवेदनाओं को जागृत कर दे , जरूरी नहीं केवल वह ही लिख सकता है , जो किसी संस्थान से जुड़ा हो यह उसका यह कार्य हो , लेखक हर वो आदमी हो सकता है , जिसकी सोच समाज हिती, यह विरोधाभाषी हो , लेखन वह कला है जो एक सुसूक्त पड़े हुए मनुष्य में अपनी लेखनी से शब्दों से ऊर्जा का संचार कर दे ,  यह ही लेखक की विशेषता होती है , वो यह कलम के उपयोग से सोच बदलने के साथ साथ समाज के नए नए पहलुओं को खोल सकता है , लिखता तो हर व्यक्ति है , हर सम्पादक है, पर कोई दूसरे लेखों के वाक्यों को चुराता है , कोई पूरा ही उतार देता है ,  जरूरी नहीं  की एक  सम्पादक ही महान लेखक हो सकता है ,  यह विचारक ,  जैसा की लोग मानते है , कोई छोटा सा सवांददाता , यह समाजसेवी , यह आम व्यक्ति  के अंदर वो गुण हो सकते है , जिसकी कलम समाज में जम जाये ।

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