Monday, October 24, 2016

कैसी क्रन्ति

कैसी यह क्रांति
न जोश है न होश है
खुद खुद से लड़ रहा
हर सख्श बेहोश है,

ख़ुद को ख़ुदा समझता
अहम में जब गर्जता
न चित की चिंता
न चिंतन किसी का
कैसी यह क्रांति

न मान न सम्मान है
फ़सा हर इंसान है
स्वम्भू बनाने की चाह है
न जाने कौन सी राह है

बस आगे बढ़ना है
कन्धा किसी का हो
बस चढ़ना है
सोच में नहीं शान्ति
कैसी यह क्रांति

Thursday, October 6, 2016

आग़ोश

तेरी आग़ोश में
जहाँ दिखा
प्रेम की झलक
स्वप्नो की ललक दिखी

स्पर्श मात्र ही
रूह की सिहरन
को जगा गयी
कुछ अरमानों के
स्वप्न सार्थक हो गए

यह स्पर्शी प्रेम
तेरी आग़ोश में
रोम रोम में
अहसाह अपन्त्व का