Wednesday, June 15, 2016

काग़जी नौका

बारिश की चार बूँद
गिर कर  हम पर यूँ लगी
जलते रेगिस्तान सा ह्दय
दरिया में बदल गया,
मन भी सरारत को
मचल उठा

कागज को मोड़ कर
दो कोने छोड़ कर
फिर मोड़ कर
उस जल धार में छोड़ दिया

वो कागज़ी नैका
बहती गयी बहती गयी
आँगन को छोड़ कर,
डेहरी के मोड़ तक,

फिर वो -
दरवाज़े में अटक गई
थोड़ी राह से भटक गयी
वो कागज़ी नौका
मेरे हाथ में समिट गयी

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