Saturday, July 25, 2015

शहीद

जब बढ़ रहे थे
कदम हमारे
सांसे रुक रही थी
दुश्मनों की

हर तरफ हमारा
खौफ़ था
कल तक जो दुश्मन
बेख़ौफ़ था
आज स्वप्न में भी
नहीं दिख रहा

माँ के चरणों को छूकर
हम जब निकले थे
सरहद में जाकर
फिर जा मिले थे

Friday, July 24, 2015

क़िस्मत की लकीरें

क्यों करता है नाज़
क़िस्मत ने जो दिया आज़
क़िस्मत को हमने भी देखा है
पानी बरसते में
दिये को जलते देखा है

तू पत्थर दिल इंसा
तू मोम की ताक़त क्या जाने
जो रो देती एक बाती के जलने से
यह पत्थर दिल इंसा