जब बढ़ रहे थे कदम हमारे सांसे रुक रही थी दुश्मनों की
हर तरफ हमारा खौफ़ था कल तक जो दुश्मन बेख़ौफ़ था आज स्वप्न में भी नहीं दिख रहा
माँ के चरणों को छूकर हम जब निकले थे सरहद में जाकर फिर जा मिले थे
क्यों करता है नाज़ क़िस्मत ने जो दिया आज़ क़िस्मत को हमने भी देखा है पानी बरसते में दिये को जलते देखा है
तू पत्थर दिल इंसा तू मोम की ताक़त क्या जाने जो रो देती एक बाती के जलने से यह पत्थर दिल इंसा