Thursday, July 24, 2014

नभ्

                                               नभ……

नभ अपनी गागर लिए ,
आस की बूंद गिराता चला ,
सूखी आँखो को नम ,
हरयाली फैलाता चला ,

घन -घटाओ की गर्ज्जना ,
दिल दहलाता चला ,
भू की भूख की तड़प ,
हारिल की प्यास बुझाता चला ,

पोखर के किनारे ,
दादुर को मन तक भीगता चला ,
 नभ अपनी गागर लिए ,
आस की  बूंद गिराता चला

Saturday, July 12, 2014

काश

                                     काश.…। 

काश यह कलम तलवार होती ,
तो हम भी हाथ लाल कर लेते ,
 कुर्बान कर देते ,
 हिंसक सरो को ,
कलम काश तलवार होती। 

पत्थर से ह्यद को ,
मोम सा काट देते ,
खौफ़ के हैवान की ,
भुजाएं उखाड़ देते ,
हम भी हाथ लाल कर लेते।
 
इज्जत के भेडियो को ,
जड़ मूल से उखाड़ देते ,
खौफ़ के शहर से 
खौफ़ को मिटा देते ,
काश यह कलम तलवार होती।