Friday, June 13, 2014

हैवानियत

                                       हैवानियत

हैवानियत का शहर 
यह जहन्नुम का है  यह आलम 

भेड़ियो  से भरा ,
शायद इंन्सा कोई न बचा ,
 
मासूम सी कितनी जिंदगिया,
लटकते फंदो में सिमट गई ,
खून के आशू ,अपनों का गम,
राजनीत की भेंट चढ़ गई ,

हैवानियत का शहर में ,
हैवानियत के दो केश और बढ़ गए ,
दिन गुजरा सब सो गए 
भेड़िये शिकार कर,
फिर फरार हो गए ,

Thursday, June 12, 2014

गंगा

                                              गंगा 

कल-कल  का स्वर करती 
पतित पावनी जल धारा 
संस्कृती की जन्म दायनी 
अमृत सी जल धरा 

दूध सी गोमुख से निकली 
पापो को जो धोते चलती 
धरती की प्यास  बुझाती
फिर सागर से मिल जाती 

आज छिड़ी जंग यह कैसी 
मानव चला माँ मिटाने 
स्वर्ग से आई जल धारा को 
कर्मो से काला पानी बनाने ,

भारत को जिसने कृषि प्रधान बनाया 
सूखे में फसलो को लहराया 
आज स्वम् लड़ रही है ,देखो 
अब बस रोको गंगा मर रही है , देखो