गरीबी की मार झेल रहा रामू और उसका भाई बिरजू , साम को खेत में ऊपर बादल निहारते हुए सोच रहे थे इस बार भी बारिस के आसार कम ही है , घर बार कैसे चलेगा और बच्चे जब रोटी के लिए रोते है तो रामू की आँखे भर आती है , पर क्या किया जाए यह तो प्रकृति की मार है , जिससे सब घिरे हुए है , बिरजू गाँव के एक सेठ के घर में काम करता था बिल्कुल मस्त मौला आदमी कुछ घमंडी , उसको किसी चीज की चिंता नहीं , बस अपने से मतलब रखने वाला ,पर कभी कभी अपने भाई और घर की स्थित देखकर चिंतित हो जाता था , घर पर पुरानी खपरैल , कुछ घास फूंस लगी हुई पर समय की मार झेलकर वो भी अस्त वस्त है , दरवाजे की जगह एक पुराना पर्दा पड़ा था , अगर कोई उसे खोल देता तो गरीबी की नग्नता को साफ़ देख सकता था , जिस तरह नारी की लाज साड़ी बचाती है उसी तरह पर्दा घर की लाज को ढके पड़ा था , पर अपने स्वभाव के कारण बिरजु कुछ समय में अपनी मनोदशा मे वापस आ जाता था और साम को सेठ से पैसा लेकर मदिरालय में दारू पीता और घर आकर सो जाता है, उसे न समाज की फ़िक्र न घर की , कौन रो रहा है कौन भूखा है बस अपने बिस्तर उठाता और बाहर आ कर सो जाता , इसके विपरीत रामू सारी रात चिंतित और पत्नी से बाते करता रहता की अब क्या होगा कल खाना किस तरह बनेगा ,इसकी योजना बनाते बनाते कब सो जाते पता नही चलता , सुबह रामू सबसे पहले उठ कर खेत जाकर कुछ खाने का इंतजाम करता था और कभी कभी दुसरो के खेत से भी कुछ सब्जिया तोड़ लेता था , पेट क्या न कराये , पल भर में चोर बना देता है एक सीधे इंसान को , बिरजू इसके विपरीत सोता और उठकर नित्यक्रिया कर काम पर चला जाता , और सेठ की जी हुजूरी कर कुछ मुनाफा भी कमा लेता , कभी कभी साम को बच्चों के लिए कुछ ले आता , पर रोजाना उसके मिलने का एक ही स्थान होता है मदिरालय , ठेका भी सेठ का कभी पैसे दिए नहीं दिए सब चलता था , कच्ची शराब पीकर मस्त होकर घर आता , खाने को मिलता तो सही नहीं तो सो जाता , समय बीतता गया , सुखा के कारण पूरा गाँव भुखमरी झेल रहा था , पर अब रामू की स्थिति और दयनीय हो गयी थी , कभी रोटी मिलती कभी खाली पेट , बच्चों को भी माँ कब तक पानी में गुड़ घोल कर दूध कह कर पिलाती ,पर आँशुओ को आँखो से निकलने से नहीं रोक पाती , बच्चे भी कभी कभी कह देते माँ रो मत यह दूध बहुत अच्छा है , तब सीने से अपने बच्चे को लगा लेती , यह सब देख कर रामू भी दुःखी हो जाता की वह कुछ कर नहीं पा रहा है , बस अपने गरीबी के दिन गिन रहा था , कभी कभी सोचता की पूर्व जन्म के कर्म है शायद , गाँव में अकाल , एक एक रोटी के टुकड़े के लिए लड़ते बच्चे , यह देख कर मन विचलित हो जाता था पर वो क्या कर सकता है ,जो स्वम् पीड़ित है , कभी कभी मन करता था की इस जीवन को समाप्त कर लू , पर आत्महत्या वो सिर्फ मेरी नहीं होगी पुरे मेरे परिवार की होगी यह सोच कर रामू सांत हो जाता था ,इधर सेठ भी जिन जिन लोगो को सूत में कर्ज दिया था उनके घरौंदों को तोड़ने से भी पीछे नहीं हट रहे है , और जब जब बिरजु उसूली करने जाता लौट कर आकर वही नित्य क्रिया में लग जाता ,कच्ची शराब पीकर सो जाना , उसका जीवन इस तरह ही चल रहा था, एक दिन रत्रि में गाँव के तीन लोगो की अचानक मृतु ने पुरे गाँव को भयभीत कर दिया , बाद में पता चला की यह सब सेठ के यहाँ से शराब पीकर आये थे इस कारण इनकी मृतु हो गयी है , सारे गाँव के लोग रामू की अगवाई में सेठ के घर जाकर हँगामा करते है , सेठ उनको सांत कराते हुए कहते है क्या चाहिये , हम सब सही कर देंगे सांत रहे , सब चले जाते है ,क्योंकि उन लोगो में प्रमुख रामू था इसलिये सेठ ने बिरजू को बुलाया और कहा की अपने भाई को कल मेरे घर लाना , बिरजू ने वही किया अगले दिन वो रामू को लेकर सेठ के घर पंहुचा , सेठ ने रामू से कहा की तुम गाँव वालो का साथ मत दो , इसके बदले में हम तुम्हे जितनी कहोगे उतनी जमीन देगे , रामू ने कुछ सोचा फिर अपने बच्चों और पत्नी के विषय में सोचने लगा की हमारे सारे कष्ट समाप्त हो जायेगे , कुछ समय के लिए स्वर्थी हो गया था और समाजवादी से पारीवारवादी बन गया था , रामू मान गया , सेठ उसे अपने खेतो की तरफ ले गया और कहा की यह सारी ज़मीन मेरी है तुम चाहो जिनती मन हो ले लो , और कहा की कल तुम जितनी ज़मीन में हल चला लोगे वो तुम्हारी होगी , यह कह कर सेठ चला गया , अब रामू को चैन नहीं पड़ रहा था रात में भोजन भी नहीं किया , सोचा की कल कम से कम सौ कोस हल चलाऊँगा सोचते सोचते सारी रात जगता रहा , की अब सब गम दूर हो जायेगे हम अमीर हो जाएंगे , दिन आया सब तैयारी रामू करने लगा एक बैल वो भी कमजोर जब इंसान भूखे है , जानवर को कौन देखे , रामू ने बैल को पानी पिलाया और सेठ को खेतो की ओर ले गया वाह सेठ का मुनीम और रामू की पत्नी बच्चे सब आ गए , कमजोर बैल और रामू भी पर इस समय न जाने कहाँ से इच्छा शक्ति रामू में आ गयी थी , रामू बलवान खुद को प्रतीत कर रहा था , रामू खेतो में हल चलाना प्रारंभ करता है , कुछ देर चलने के बाद बैल कमजोरी के कारण रुक जाता है , सोचता है अभी कोस भर भी नहीं हुआ और बैल रुक गया , और वो चाबुक उठाता है बैल को मारता है बैल भी अपनी जन्दगी के लिये चलता है और चलता रहता है अब रामू को क्रूरता के लक्षण दिखने लगे थे , लगातार मार खाने और चलने से अब बैल भी चलने में असमर्थ हो रहा था , सर पर घोर धुप , अब रामू एक ही बात सोच रहा था की सौ कोस कम से कम , पर अभी तो तीन कोस भी नहीं हुए और घमंड और क्रूरता से भर कर बैल को मरता रहा , और वो कुछ कदम चलता और रुक जाता , अंत में बैल कुछ कदम चल कर गिर जाता है , तब रामू समझ जाता ही की अब यह नही उठ पायेगा, और बैल से हल निकालकर खुद हल कंधे में रख लेता है और बैल को तड़पते मरता छोड़ कर आगे बढ़ जाता है काफी चलने के बाद , पसीने से तरबतर हो जाता है और थक कर बैठ जाता है ,पर मन में लालच भी अब आ गया की कुछ जमीन और जोत लु मेरी हो जायेगी , और उठ कर आगे बढ़ गया ,आज रामू में हर परिवर्तन आया , कई रूप सामने आये , रामू काफी आगे निकल आने के बाद वापस जाने के लिए सोचने लगा और हल उठा कर चल दिया चलता रहा और चलता रहा जब तक उसके कदमो ने उसका साथ दिया और एक जगह बैठ गया अब एक कदम चलने में समर्थ नही था अब उसकी स्थिति उस बैल के सामान थी , रामू सोचने लगा की क्यों वो इतनी दूर आ गया अगर वापस नहीं गया तो कुछ नहीं मिलेगा , अब हताशा भी साफ़ साफ़ झलक रही थी , बार बार उठ कर चलता और रुक जाता , रामू का शारीर अपनी कार्य करने की सीमा से परे जा चूका था , यहाँ दूसरी तरफ सूर्य की लालिमा की स्थित में आने लगा था और धीमे-धीमे तिमिर से सूर्य धरा की ओर लालिमा लिए बढ़ने लगा था रामू को अब समय की सोच ने घेर लिया की वह पहुँच पायेगा की नहीं , उसने हल को छोड़ दिया और अपने गाँव की तरफ दौड़ पड़ा , रुकता फिर दौड़ता शारीर में अब चलने की छमता समाप्त हो गयी थी रामू कुछ दूर चला और गिर गया , तब उसने देखा की उसका परिवार दो बीघे बाद खड़ा इंतजार कर रहा है अब उसकी आँखो में चमक को साफ़ साफ़ देखा जा सकता था , वो उठा और तेजी से चलने लगा और अपनी पत्नी के पास पहुँच कर गिर गया मुँह से ख़ून आने लगा और उसकी आँखे बंद होने लगी थी और कुछ समय बाद उसकी सांसे थम गयी और परिवार ने सब कुछ खो दिया बच्चे अनाथ और पत्नी बेवा हो गयी , अब सेठ ने भी बिरजू का साथ छोड़ दिया और गाँव वाले भी नराज़ थे अब स्थित और बत्तर हो गयी थी, बिरजू गाँव छोड़ कर चला जाता है और रामू की पत्नी बच्चों को लेकर अपनी झोपडी का पर्दा हटाती और अंदर चली जाती शायद कभी बाहर न आने के लिये ।
Sunday, May 29, 2016
Monday, May 2, 2016
कलम के सिपाही
डरता हूँ, सच लिखने से
कलम जला दी न जाये
डरता हूँ सच कहने से
कही सांसे थाम न दी जाये,
पर हम नहीं है रुकनेवाले
कितनी कलमें तोड़ेंगे
कब तक सच से मुँह मोड़ेंगे
हम भी फौलादी हौसले वाले
सीने की आग को
कोरे पन्नों में लिखने वाले
सच को जो कर रहे प्रताड़ित
पराजित न कर पाएंगे
भले जीत कर चल रहे अभी
पर मेरे हौसलें से न लड़ पाएंगे,
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