Thursday, August 27, 2015

हथेली में चाँद

आज रात्रि में मन
एक अज़ीब कोशिश कर रहा
बार बार चाँद को हाथो में भर रहा
चंचल मन न मान रहा
न हार रहा

कभी कभी नभ्चर की छाया
चाँद में पड़ जाती है
कभी मेघ भी गागर लेकर आ जाते है
पर मन नहीं मान रहा
हाथो में चाँद को भर रहा

बचपन की कुछ झलकियां
आज अतीत में ले जा रहा
माँ की लोरियां नानी की कहानियाँ
आज फिर सुना रहा
आज चाँद को मन पकड़ रहा